Kostenlose Uhr fur die Seite website clocks

शनिवार

सच को खंगालती कविताएं ‘बीड़ी पीती हुई बूढ़ी औरत’


कोई भी रचना चाहे वह किसी भी विद्या मे हो, उन सभी की संरचनात्मक मांग वक्त की तमाम हालतों को अपने में अंतर्निहित करने की होती है। सच है कि उस समय के सम्पूर्ण संयोजन के अभाव में किसी बेहतर रचना का विन्यास नहीं हो सकता। तब यह आवश्यक प्रतीत होता है कि रचना में स्मृति, अनुभव और स्वप्न रूपांतरित हांे यदि वह रचना तथ्यों के इतिहास, घटनाक्रम से हो तो लेखक के बिंबों से वे क्षण पुनर्सृजित होते हैं। कवि देवांशु पाल भी उन क्षणों से प्रभावित हैं। वे अपनी रचनात्मक विधाओं में अपने विभिन्न बिंबों के माध्यम से, वक्त के तमाम यर्थाथ को अपने में समेट लेते हैं।
     देवांशु पाल कवि-हृदय के साथ कथाकार भी हैं। उनकी प्रथम कविता संग्रह ‘बीड़ी पीती हुई बूढ़ी औरत’ में चातुर्दिक फैले हुए समय-संकट के मध्य वे इंसानी चेहरे हैं, जिन्हें हम-आप पहचान कर भी, मुख्य-धारा के वैचारिक-मुहिम में शामिल नहीं करते। कवि देवांशु इन क्षणों से मुक्त कदापि नहीं होते, बल्कि सामाजिक प्रतिबद्धता को बखूबी जानते हैं और उनके करीब जाकर अपनी दृष्टि व्यक्त करते हैं। साकारात्मक हस्तक्षेप के मध्य कविता-संग्रह की दो महत्वपूर्ण कविताएँ, जो तिब्बत की आजादी के लिए सपने देखते हैं, इन आशयों में कि मुझे विश्वास है / तुम्हारे बच्चे / आजादी की खुली हवा में / एक बेहतर कल तुम्हें सौपेंगे।’ (पृ.सं.-12.) कविता में एक तिक्तता ऐसी भी है कि मिलने वाली आजादी लाशों को लांघते हुए होगी, तब हमें लगेगा कि हम जीत कर भी हार गए। कविता ‘जब तुम लौट आओगे’ का वह दृश्य, पाठकों को द्रवित करता है- ‘जब तुम लौट आओगे / उन लाशों को लांघते हुए / तब तुम्हें ऐसा लगेगा / तुम जीतकर भी हार गए।’ (पृ.सं.-13) यह अपने मिशन का आत्मविश्लेषण है। और यह आत्मविश्लेषण ईमानदारी-पूर्वक हम तभी कर सकते हैं, जब हम सच्चे हृदय से इन कारकों से आत्म-साक्षात्कार करें। कविता ‘बिलासपुर जल रहा है’ उन्हीं सच्चे आत्म-साक्षात्कार का नतीजा है।  देवांशु की कविताओं में व्यापक सामाजिक विसंगति या प्रतिकूल स्थितियों को जानने के बाद त्रासदी पूर्ण जिन्दगी से मोहभंग ही नहीं, बल्कि इस मोहभंग के पश्चात उत्पन्न बेचैनी याफिर एक खास तल्खी से भरा आवेश होता है और आक्रोश भी। इस लिहाज से संग्रह की कुछ कविताएँ महत्वपूर्ण है- ‘फ्लैट में काम करने वाली लड़की’, ‘मल-मूत्र ढोता आदमी’, ‘गोलू मोची’, ‘आदमी को आदमी का ढोना’, ‘रोज इसी तरह’, ‘चुप्पी’। जिन्दगी की नियति तो देखिए- ‘रोज इसी तरह / लड़का चमकाता है जूते /साहब लोगों के / रोज इसी तरह / निकलती है धूप तेज /रोज इसी तरह / जलता है पेट / लड़के का भूख से ।’ (कविता ‘रोज इसी तरह’) पृ.सं.- 77
    कवि समय के साथ घटित किसी आहतपूर्ण घटनाओं के जरिये उस आदमी के प्रति संवेदना और सोच के लिए, घटनाक्रम के नींव में जाकर उन कारकों के हताशावस्था को ढूँढते हैं। कवि अपनी उन कविताओं में इन व्यापक मानवीय नीयति के संदर्भ में, मूर्त स्थितियों का सांस्कृतिक पक्ष देखता है। शंकर गुहा नियोगी पर इनकी कविता ‘तुम हो आज भी’ इन्हीं दृष्टियों का द्योतक है, इन अंशों में- तुम हो आज भी / इसलिए बनी रहती है संभावनाएँ / विस्फोट की / चट्टानों के सीने में। (पृ.सं.-39)
    महानगर की संस्कृति, जहाँ रिश्तों की मिठास और अपनत्व की उष्मा सिकुड़ती जा रही है और अंततः आदमी धीरे-धीरे अपने अंतस से शुष्क और संवेदनाओं के प्रति दरकता चला जा रहा है, इन मनः स्थितियों की कुछ कविताओं पर भी देवांशु पाल की गहरी पकड़ है। ‘राजधानी की तरफ से आती सड़क’, ‘शहर के बच्चों के सपने में’, ‘मेरे शहर में’, ‘शहरः एक’, ‘शहर: दो’, ‘मकान-एक’, ‘मकान-दो’, के अतिरिक्त ‘गुमशुदा’, ‘उनका गुजर जाना’, ‘बचपन का दोस्त’, बत्तीस साल की कुवांरी लड़की’ की पीड़ाएँ पाठकों को बेचैन कर डालती है। संग्रह की शीर्षक कविता ‘बीड़ी पीती हुई बूढ़ी औरत’ का मर्म भी यूं उभरता है, जैसे- ‘बीड़ी की सुलगती आग / बीड़ी से निकलता तेज धुआँ / और बीड़ी की बदबू / क्या वह औरत बर्दास्त कर सकेगी।’(पृ.सं.87) यह कविता बीड़ी पीने की संस्कृति के विरूद्ध सहमति और असहमति का विमर्श है जहाँ प्रदूषण के साथ बीड़ी पीने के पीछे के प्रेम भरे चरित्रिक इतिहास को भी चिह्नित किया गया है।
    तिरपन कविताओं के इस संग्रह में देवांशु पाल ने जटिल समय में घटते घटनाक्रम, चूकते रिश्तों और चरित्र-स्खलन के सच के निर्वसनित रूपों को उजागर किया है। अपनी कविताओं में वे अपनी अंतरंग अनुभूतियों को कलात्मक अभिव्यक्ति देने में भी सक्षम नजर आते हैं। इनकी कविताओं में सच को खंगालती हुई गहरी और ईमानदार बेचैनी मौजूद है।
 - अरुण अभिषेक, विवेकानन्द कालोनी, पूर्णियाँ 854301. मोबाइल- 09852888589.
पुस्तक -बीड़ी पीती हुई बूढ़ी औरत’,
कवि - देवांशु पाल,
प्रकाशक - बोधि प्रकाशन, जयपुर-302006., मू.-40/00
 

कोई टिप्पणी नहीं:

Related Posts with Thumbnails