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शुक्रवार

युवा कवि राजकिशोर राजन को ‘जनकवि रामदेव भावुक स्मृति-सम्मान’

 कवि राजकिशोर राजन

पटना, युवा कवि राजकिशोर राजन को वर्ष 2011 का ‘जनकवि रामदेव भावुक स्मृति-सम्मान’ दिए जाने की घोषणा ‘रचना’ (एक साहित्यिक मंच) की ओर से स्थानीय केदार भवन, अमरनाथ रोड, पटना के कविवर कन्हैया कक्ष में की गई। संस्था के अध्यक्ष तथा वरिष्ठ साहित्यकार छंदराज ने कहा कि युवा कवि राजकिशोर राजन के अबतक तीन कविता-संग्रह छपे हैं। इन्हें पूर्व में बिहार राष्ट्रभाषा परिषद सहित अन्य महत्वपूर्ण संस्थाओं ने भी सम्मानित किया है। राजभाषा विभाग, पूर्व मध्य रेल, हाजीपुर में कार्यरत राजकिशोर राजन की कविताओं में मनुष्य की पक्षधरता धारदार रूप से दिखाई देती है।
    पुरस्कार चयन समिति के सदस्यों में चर्चित कवि शहंशाह आलम तथा राज्यवर्द्धन भी थे।
राजन की कविताएं ‘वर्तमान साहित्य’ व ‘दस्तावेज’ के ताजे अंक में भी ...

मंगलवार

डॉ. देवसरे को साहित्‍य अकादेमी का बालसाहित्‍य पुरस्‍कार 2011


    हिन्‍दी में साहित्‍य अकादेमी का बालसाहित्‍य पुरस्‍कार 2011 वरिष्‍ठ बालसाहित्‍यकार डॉ. हरिकृष्‍ण देवसरे को उनके आजीवन योगदान के लिए आज उनके आवास (ब्रजविहार, गाजियाबाद) पर साहित्‍य अकादेमी के उपसचिव श्री ब्रजेन्‍द्र त्रिपाठी के हाथों प्रदान किया गया। पुरस्‍कार के अंतर्गत 50,000 रुपये की राशि का चेक और प्रतीक चिह्न शामिल हैं। इसके पहले उन्‍होंने पुष्‍पगुच्‍छ और शॉल ओढ़ाकर डॉ. देवसरे का अभिनंदन किया। उन्‍होंने प्रशस्‍ति-पाठ करते हुए डॉ. देवसरे के अमूल्‍य योगदान को रेखांकित किया। इस अवसर पर उनके पुत्र श्री शशांक, पुत्री श्रीमती शिप्रा, पत्‍नी श्रीमती विभा देवसरे तथा बालसाहित्‍य लेखक श्रीमती शांता ग्रोवर, श्रीमती मधुमालती जैन एवं देवेन्‍द्र कुमार देवेश (तीनों अकादेमी में कार्यरत) उपस्‍थित थे। ध्‍यातव्‍य है कि अकादेमी के बालसाहित्‍य पुरस्‍कार 24 भारतीय भाषाओं के लिए 14 नवंबर 2011 को अकादेमी के अध्‍यक्ष श्री सुनील गंगोपाध्‍याय के हाथों कोलकाता में समारोहपूर्वक प्रदान किए गए थे, जिसमें अपनी अस्‍वस्‍थता के कारण डॉ. देवसरे नहीं पहुँच पाए थे। पुरस्‍कार-प्राप्‍ित के बाद डॉ. देवसरे ने बालसाहित्‍य को प्रोत्‍साहित करने के लिए अकादेमी के प्रति आभार व्‍यक्‍त करते हुए कहा कि साहित्‍येतिहास के लोग अभी तक बालसाहित्‍य को साहित्‍य के इतिहास में सम्‍मिलित नहीं कर पाए, लेकिन अब निश्‍चित रूप से यह माना जाएगा कि बालसाहित्‍य साहित्‍य की एक ऐसी विधा है, जो निरंतर उन्‍नति कर रही है और अब वह ऐसे स्‍तर पर पहुँच गई है कि उसको इतिहास में भी महत्‍व मिलना चाहिए और मिलेगा, अवश्‍य मिलेगा। इस दिशा में काम भी हो रहा है और अच्‍छी बात ये है कि जो दृष्‍टिकोण है साहित्‍य अकादेमी का, वह नया है, आधुनिक है और वह समसामयिक है। 
- देवेन्‍द्र कुमार देवेश
उपसंपादक
साहित्‍य अकादेमी, नई दिल्‍ली, मो.- 09868456153

शुक्रवार

बहुमुखी प्रतिभा के बेचैन कवि हैं उद्भ्रांत- शहंशाह आलम

 ‘समकालीन साहित्य मंच’ मुंगेर के तत्वावधान में स्थानीय बदरुन मंजि़ल, गुलज़ार पोखर,  में वरिष्ठ कवि उद्भ्रांत के सद्यः प्रकाशित कविता-संग्रह ‘अस्ति’ पर एक सारगर्भित विचार-गोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसकी अध्यक्षता चर्चित शायर डा. अनिरुद्ध सिन्हा ने की तथा संचालन युवा कवि शहंशाह आलम ने किया। विषय प्रवर्तन करते हुए शहंशाह आलम ने कहा कि उद्भ्रांत बहुमुखी प्रतिभा के एक बेचैन कवि हैं। उनकी बेचैनी का मुख्य कारण समाज और उनके आस-पास की त्रासदियाँ हैं और इन त्रासदियों में उनकी रचनात्मकता छटपटाहट की शक्ल अखि़तयार करती नज़र आती है। ‘अस्ति’ की सारी कविताएँ इन्हीं त्रासदियों की अभिव्यक्ति के रूप में हमारे समक्ष प्रस्तुत होती हैं। कवि के हृदय में विद्रोह की आग है, वह आग जब पाठक आत्मसात करता है तब स्वतः ही उसके समक्ष अपने समाज और देश का एक नया क्षितिज उद्घाटित होता है। स्पष्ट है कि कवि ने अपनी कविताओं में सिर्फ़ विद्रोह के रूप में विध्वंस को ही निमंत्रित नहीं किया है, बल्कि प्रगतिशीलता की डोर पकड़कर बेहतर भविष्य की कल्पना भी की है। संगोष्ठी के अध्यक्ष डा. अनिरुद्ध सिन्हा ने कहा कि ‘अस्ति’ की कविताओं के सुर हमें ख़ामोशी की दलदल की ओर नहीं ले जाते हैं, बल्कि हमें उठ खड़े होने तथा समाज की बेहतरी के लिए कुछ कर गुज़रने को विवश करते हैं। कवि उद्भ्रांत की कविताएँ सामाजिक परिप्रेक्ष्य की कसौटी पर खरी उतरती हैं। इसके साथ ही, कविताओं की सार्थकता उस समय और अधिक हो जाती है जब वे हमें स्वयं को और गहराई से पढ़ने के लिए विवश कर देती हैं। हिन्दी कविता के समक्ष जो पठनीयता का संकट है, ‘अस्ति’ की कविताएँ उसका प्रतिवाद करती हैं। यह कवि की सफलता है जिसमें अभिव्यक्ति और पठनीयता साथ-साथ चलती है। हिन्दी ग़ज़ल के समर्थ ग़ज़लकार अशोक आलोक ने कहा कि हिन्दी कविता कथ्य और बड़े कैनवस के लिए जानी जाती है। समकालीन कोई भी समर्थ कवि घटनाओं के घटने से पूर्व ही उसका आभास पाठकों को कराते हुए अपने यथासंभव विरोध की उपस्थिति दर्ज़ करवा देता है। इस दृष्टि से ‘अस्ति’ की कविताएँ हमें उद्भ्रांत की प्रगतिशीलता से आश्वस्त करवाती हैं। 
     उर्दू के समर्थ रचनाकार प्रो. इमाम अनीस ने ‘अस्ति’ की कविताओं पर विस्तार से चर्चा करते हुए कहा कि हिन्दी और उर्दू में समकालीन विचारधाराओं का एक मज़बूत स्वर सुनाई दे रहा है। उस स्वर में हम अपने जीवन की कई झाँकियों की व्याख्या सुनते हैं। कवि उद्भ्रांत की कविताओं में आगत के स्वर तो हैं ही, साथ ही सकारात्मक वैचारिक सोच की अभिव्यक्ति भी है। युवा ग़ज़लकार विकास ने कहा कि उद्भ्रांत की कविताओं में समकालीन विद्रूपताओं का रुदन ही नहीं है, एक बेहतर भविष्य की कल्पना भी है। इससे स्पष्ट होता है कि कवि आग पर चलते हुए शीतलता की खोज में गतिमान हैं। इससे आने वाली पीढ़ी उनकी इस रचनात्मकता से लाभ उठाएगी।
इसके अतिरिक्त समाजकर्मी हबीब-उर-रहमान, युवा कवयित्री यशस्वी, युवा कवि समीर कुमार, धीरज कुमार आदि ने भी ‘अस्ति’ पर अपने-अपने विचार प्रकट किए।

                                                                            -अनिरुद्ध सिन्हा
                                                                           

बुधवार

बिहार प्रगतिशील लेखक संघ का 14 वाँ राज्य सम्मेलन ... जुटेंगे साहित्यकार ।




बिहार प्रगतिशील लेखक संघ की पूर्णिया इकाई के प्रस्ताव पर दिनांक 11 एवं 12 फरवरी (रविवार) को बिहार प्रगतिशील लेखक संघ का 14 वाँ राज्य सम्मेलन पूर्णिया में संयोजित होने जा रहा है। जिसमें प्रलेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष डा. नामवर सिंह, डा. खगेन्द्र ठाकुर, महासचिव प्रो. अली जावेद, समालोचक- चौथीराम यादव सहित अन्य प्रतिष्ठित साहित्यकार भाग लेंगे। 
इस प्रान्तीय सम्मेलन की रूपरेखा निर्धारित करने हेतु राज्य कार्यसमिति की एक आवश्यक बैठक दिनांक - 11 दिसम्बर 2011. रविवार को 12 बजे से प्रान्तीय कार्यालय - केदार भवन (जनशक्ति परिसर, अमरनाथ रोड, पटना -1) में होगी। आप सादर आमंत्रित हैं।
संपर्क: महासचिव (बिहार प्रलेस) मो.- 09471456304.


मंगलवार

साझे सपनों को साकार करता ‘दोआबा’ का यह अंक


'दोआबा' अंक - 10 अपने आकर्षक कलेवर और संपादक के रूचिकर रचना-चयन जैसे श्रमसाध्य अनुष्ठान का प्रतिफल है। यही कारण है कि दोआबा अपनी उपादेयता को मूल्यवान बनाने के साथ-साथ यह साहित्य जगत की अनिवार्य पत्रिका भी बन जाती है।
    'दोआबा' के इस अंक में सुचयनित कविता एवं कहानियों में सिएथल, मीरा कुमार, स्नेहमयी चैधरी, सोनिया सिरसाट, राजेन्द्र नागदेव, राजकुमार कुम्भज, रामकुमार आत्रेय, सुशील कुमार, अशोक गुप्त, भारत भूषण आर्य और ज्ञानप्रकाश विवेक सम्मलित हैं। मीरा कांत का एकल नाटक- गली दुल्हनवाली, आत्मगत में मधुरेश और मनमोहन सरल का आलेख - भारत की आत्मा के चितेरे थे हुसेन के साथ संवेदना व वैचारिकता से पूर्ण संपादक जाबिर हुसेन के संपादकीय- ... मैं तुम्हारे शहर आऊँगा, सोहा, फिर आऊँगा... गहन सूक्ष्मता संजोए यथार्थ व संवेदनाओं का खूबसूरत कोलाज है।
    इस अंक में प्रकाशित मीरा कुमार की कविता ‘साझा सपने’ की एक बानगी-
    है तुम्हारी पलकों पर इन्द्रधनुष
    उसके रंग मेरी आंखों में तैर रहे
    तुममें और मुझमें
    ये सपनों की कैसी साझेदारी है

    ...........
    ........            - अध्यक्ष, लोक सभा, नई दिल्ली।

दोआबा / संपादकः जाबिर हुसेन
सी-703, स्वर्ण जयंती सदन, डा बी डी मार्ग, नई दिल्ली 110 001.
मोबाइल- 09868181042.

शनिवार

जन - बातों को समग्रता से समेटने की सार्थक पहल है ‘प्रसंग’ का संस्मरण अंक


‘प्रसंग’ के इस अंक में प्रतिष्ठित लेखकों ने विभिन्न तरह की स्मृतियों को रचनात्मक वाणी दी है। शताब्दी पूरा करने वाले अपने दिवंगत महान रचनाकारों  में राधाकृष्ण, उपन्द्रनाथ अश्क, शमशेर, नागार्जुन, केदारनाथ अग्रवाल, फादर कामिल बुल्के और तेलगु के महाकवि श्री श्री के रचनात्मक व्यक्तित्व के विभिन्न पहलुओं को प्रस्तुत किया गया है। अंक में गोपाल सिंह नेपाली और फैज अहमद फैज़ की कविताए हैं। रवीन्द्रनाथ टैगोर की डेढ़ सौवीं जयन्ती के अवसर पर उनकी अति विशिष्ट कविता का शब्दान्तर प्रस्तुत है। साहित्य को नयी दृष्टि और दिशा देने वाले त्रिलोचन, अज्ञेय, राजकमल चैधरी, गोरख पाण्डेय, महेश्वर, भवानी प्रसाद मिश्र, कुँवरपाल सिंह और मार्कण्डेय जैसे कई शख्सियतों का मूल्यांकन एवं संस्मरण साहित्य पर आलेख हैं साथ ही मरुधर मृदंल, विजय बहादुर सिंह और वीर भारत तलवार से समकालीन रचनाधर्मिता पर बातचीत से अंक समृद्ध है। प्रसंग, पृ. 418. मूल्य- 50/ संपादक- शम्भू बादल, सूरज-घर, जबरा रोड, कोर्रा, हजारीबाग- 825301. झारखंड, मोबाइल- 09931182570.

उदय प्रकाश की रचनात्मकता पर केन्द्रित ’शीतल वाणी’ का अगला अंक... रचनाएं आमंत्रित।


हुचर्चित कवि, कहानीकार और साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित श्री उदय प्रकाश की षष्ठीपूर्ति  के अवसर पर शीतल वाणी’ का अगला अंक केन्द्रित होगा। इस अंक हेतु उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर आधारित रचनाएं आमंत्रित-


मंगलवार

कमला प्रसाद ने कहा था - साहित्य कला का मूल प्रायोजन उदात्त और सुसंस्कृत समाज की रचना है।

कमला प्रसाद के साथ अरविन्द श्रीवास्तव

बाजार में क्या नहीं है? बाजार में सब है, धन है, कीर्ति, धर्म-कर्म, अर्थ- काम, मोक्ष सब है। ऐसे में साहित्य क्या कर सकता है। निश्चय ही संवेदना की रक्षा विखण्डन में से संश्लेषणात्मक विचारों और भावों के नये रचनात्मक रूपाकारों को मानवीय गरिमा प्रदान करना उसका लक्ष्य रहा है। इसी उद्देश की प्रतिबद्धता उसे लाभ-लोभ से बाहर रखने का दबाव देती थी। रचनाकार को विपक्ष में होने को मजबूर करती थी। मार्क्स के शब्दों में कहें ‘पूंजीवाद युग में साहित्य को साहित्य मात्र बने रहने और कला को कला बने रहने के लिए पूंजीवाद का विरोध करना पड़ता है।’ मार्क्स ने सौन्दर्यशास्त्र पर कोई स्वतंत्र पुस्तक नहीं लिखी पर व्यक्ति, समाज, जीवन, सृष्टि और प्रकृति के सार्वभौमिक स्वरूप पर विचार करते हुए इस अपरिहार्य मानवीय कर्म की व्याख्या की है। उन्होंने लेखकों को आगाह किया है कि वे रचनाकर्म को लोभ का साधन न बनाएं। यह काम जिन्दा रहने की जरूरतों के लिए नहीं है। साहित्य कला में मूलतः रचनाकार का इंद्रियबोध-भावबोध व्यक्त होता है जिसमें मनुष्य स्वतंत्र होकर अपने पैरों पर खड़ा हो सके। इन्द्रियों को निर्बन्ध बना सके, विचारों का मानवीयकरण-समाजीकरण हो सके और मनुष्यता के दायरे में कृत्रिम रूप से निर्मित विभेदों की समाप्ति हो सके। साहित्य कला का मूल प्रायोजन उदात्त और सुसंस्कृत समाज की रचना है। मनुष्य को अपनी मनुष्यता इन्हीं रूपाकारों में अर्जित कर विकसित करनी पड़ती है। - बिहार प्रलेस संवाद

शुक्रवार

राजेन्द्र यादव की दिक्कत यह है कि वे गंभीर बातों के कारण चर्चा में रहना नहीं चाहते ... ‘एक और अन्तरीप’ में हेतु भारद्वाज ।


राजस्थान की साहित्यिक परंपरा में ‘एक और अन्तरीप’ (संपादक- डा. अजय अनुरागी एवं डा. रजनीश संपर्क- 1.न्यू कालोनी, झोटवाड़ा, पंखा, जयपुर- 302012. राज., मोबाइल- 09468791896) का लंबे अंतराल के बाद साहित्य जगत में सुखद व साथर्क हस्तक्षेप हुआ। पत्रिका के प्रधान संपादक प्रेमकृष्ण शर्मा का मानना है कि लधु पत्रिका निकालना या साहित्य रचना करना कोई विलासिता नहीं है, बल्कि अपने रक्त से उस हथियार को निर्माण करना है जो मानव-मुक्ति की लड़ाई में कारगर होकर मानव को शोषण चक्र से मुक्त करेगा। ‘एक और अन्तरीप’ उन्हीं लोगों के साथ है जो मानव मुक्ति के संग्राम में सक्रिय रहे हैं...। अंक में ‘जटिल समय के सहज कविः गोविन्द माथुर’ शीर्षक से संपादक अजय अनुरागी ने कवि गोविन्द माथुर के कविता कर्म का सहृदयता से मूल्यांकण किया है, उनका मानना है कि गोविन्द माथुर की कविताएँ दुरूहताओं और भयावहताओं से परे है। इन्हें पढ़ने के लिए अतिरिक्त तैयारी या विशेष मानसिक योग्यता की जरूरत नही है। ये कविताएँ हलचल रहित शालीन शैली में लिखी गई है। गोविन्द माथुर की कविताओं की गंभीरता व समय की विद्रुपता पर व्यंग्य को मुक्तस़र में देखें-
कौन पूछता है कवियों को /अच्छे पद पर हों तो बात और है।
एक और बानगी
‘हम उन्हें कवि नहीं मानते / क्योंकि वे हमारे गुट में नहीं है।’
गोविन्द माथुर युवा कवियों के आचरण को भी गहराई में जाकर झकझोरते हैं -
युवा कवि होने के लिए/लबादे की तरह विद्रोह ओढ़े रहना चाहिए/सुविधा भोगते हुए भी/हमेशा असन्तुष्ट और नाराज दिखते रहना चाहिए/हर समय होठों पर/टिकाए रखना चाहिए किंग साइज सिगरेट/हर शाम शराब पीते हुए/अपने वरिष्ठ कवियों को गाली देते रहना चाहिए।
गोविन्द माथुर की कविताएँ अपने कथ्य व शिल्प की जहजता के साथ पाठकों को उद्वेलित करती हैं। अंक में वरिष्ठ साहित्यकार हेतु भारद्वज से डा. नरेन्द्र इष्टवाल से बातचीत इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि इधर साहित्य में चले विभिन्न विमर्शों यथा- स्त्री, दलित जैसे मुद्दों पर हेतु भारद्वाज ने खुल कर विचार व्यक्त किए हैं। राजेन्द्र यादव के स्टैण्ड को व्यख्यायित करते हुए वे कहते हैं - ‘राजेन्द्र यादव की दिक्कत यह है कि वे गंभीर बातों के कारण चर्चा में रहना नहीं चाहते बल्कि हल्की बातों को लेकर चर्चा में बने रहने का प्रयास करते हैं। उन्होंने प्रयास यही किया कि वे ‘हंस’ को अपने नेतृत्व के लिए इस्तमाल करें और उन्होंने स्त्री विमर्श और दलित विमर्श के झण्डे बुलन्द किए। उन्होंने स्त्री और दलित को पूरे समाज से अलग करके देखा। उसका नतीजा यह हुआ कि दलित विमर्श उनकी साहित्यिक राजनीति का हिस्सा बन गया और स्त्री विमर्श उनका व्यक्तिगत मामला।’ अंक में कवि शताब्दी के अंतर्गत फैज अहमद फैज की जन्मशती वर्ष पर रामनिहाल गुंजन का आलेख - जब तख्त गिराये जाएँगे,जब ताज उछाले जायेंगे’ रोचकता से पूर्ण है। चार कहानियाँ सहित कविता की एक मुकम्मल दुनिया अंक की सार्थकाता पर मुहर लगाती है। विमर्श में डा. रंजना जायसवाल का आलेख ‘सैक्स का पाखण्ड’ कई मिथकों को खारिज करती है। रंजना का मानना है कि -सेक्स शिक्षा इसलिए जरूरी है कि सेक्स के मनोविज्ञानिक पहलू को भी समझा जा सके वरना सेक्स का सेंसेक्स कभी भी इतना गिर सकता है कि स्त्री-पुरुष का स्वभाविक प्रेम खत्म हो जाएगा। ‘एक और अन्तरीप’ का सिलसिला आगे भी चलता रहे ऐसी सुखद कामना की जाय।

सोमवार

गीतांजलि के हिन्‍दी अनुवाद : रेवती रमण



विश्‍वकवि गुरुदेव रवीन्‍द्रनाथ ठाकुर की एक सौ पचासवीं जयंती के अवसर पर अनेक आयोजन हुए हैं। भारत की सभी प्रमुख भाषाओं की पत्र-पत्रिकाओं में उनके जीवन और साहित्‍य से संबद्ध लेख आदि प्रकाशित हुए हैं। उनकी रचनाओं के अनुवाद तो उन्‍नीसवीं सदी क अंतिम दशक में ही प्रकाशित होने लगे थे। डॉ. देवेन्‍द्र कुमार देवेश की पुस्‍तक गीतांजलि के हिन्‍दी अनुवाद को इसी परिप्रेक्ष् में एक हिन्दी कवि-लेखक का अनोखा उपहार समझना चाहिए। इससे बेहतर विश्वकवि को दी गई कोई श्रद्धांजलि नहीं हो सकती। देवेश की यह किताब इसलिए भी खास तौर पर पठनीय है कि इससे अनेक भ्रमों को निवारण होता है। कम लोग जानते हैं कि पुरस्‍कृत गीतांजलि की अंग्रेजी रचनाऍं गद्यात्‍मक हैं, पद्यात्‍मक नहीं। उनका प्रभाव भले काव्‍यात्‍मक हो। एक बड़ा भ्रम यह है कि बांग्‍ला गीतांजलि के अनुवादक डब्‍ल्‍यू. बी. येट्स हैं। इस भ्रम को प्रचारित करने में कुछ पश्‍चिमी लेखकों की भी विवादास्‍पद भूमिका है। इस विडंबना से हिन्‍दी के लेखक भी नहीं बचे। मसलन गजानन माधव मुक्‍तिबोध ने अपनी प्रतिबंधित कृति भारत : इतिहास और संस्‍कृति में लिखा है, ‘’आयरलैण्‍ड के विश्‍वविख्‍यात कवि डब्‍ल्‍यू. बी; येट्स ने उनकी (रवीन्‍द्रनाथ की) गीतांजलि का अंग्रेजी में अनुवाद किया।‘’ यही बात अमृतलाल नागर और त्रिलोकीनाथ चतुर्वेदी ने भी शब्‍द-भेद से कही। देवेश ने गहरी छानबीन के उपरांत स्‍पष्‍ट कर दिया है कि अंग्रेजी गीतांजलि विश्‍वकवि की स्‍व-रचित सामग्री है। उन्‍होंने शब्‍द गिनकर दिखाया है। मुश्‍किल से तीस-पैंतीस ऐसे शब्‍द हैं, जो येट्स के संशोधन के साक्ष्‍य देते हैं। येट्स के साथ ऐण्‍ड्रूज का नाम भी इस परिप्रेक्ष्‍य में लिया जाता है। लेकिन देवेश ने इस भ्रांति को भी निर्मूल सिद्ध किया है। प्रस्‍तुत शोधालोचना का मुख्‍य प्रतिपाद्य गीतांजलि के हिन्‍दी अनुवादों से संबद्ध है। इसके लिए दो पूरे अध्‍याय हैं। पद्यात्‍मक और गद्यात्‍मक अनुवादों के विवेचन-विश्‍लेषण के लिए अलग-अलग अध्‍याय। भिन्‍न अनुवादकों की रचनाओं को आमने-सामने रखकर सतर्क और सटीक विवेचन प्रभावित करता है। गीतांजलि का हिन्‍दी में पहले देवनागरी लिप्‍यंतरण हुआ, अगले वर्ष 1915 में काशीनाथ जी ने उसका गद्यानुवाद किया। हिन्‍दी से पहले डेनिश, स्‍वीडिश और रूसी में। देवेश ने अपने अध्‍ययन के लिए अनुवादों की चार कोटियॉं बनाई हैं : 1) देवनागरी लिप्‍यंतर, 2) गद्यानुवाद, 3) पद्यानुवाद, और 4) व्‍याख्‍यानुवाद। हिन्‍दी में पहला छंदोबद्ध पद्यानुवाद द्विवेदीयुग के गिरधर शर्मा नवरत्‍न ने किया। इस प्रबंध-कार्य में देवेश ने कितना श्रम किया है, यह समझने के लिए इसके दो बड़े अध्‍याय ही पर्याप्‍त हैगद्यानुवाद और पद्यानुवाद के। स्रोत और लक्ष्‍य भाषाओं की प्रकृति को समझते हुए, हर पंक्‍ति का विशद विवेचन। बल्‍कि इसका परिशिष्‍ट भी अत्‍यंत उपयोगी है। गीतांजलि के अनुवादकों का संक्षिप्‍त परिचय देकर उन्‍होंने अनुवाद-कर्म की गरिमा बढ़ाई है। उपलब्‍ध अनुवादों की मीमांसा में उनकी उपलब्‍धियों और सीमाओं का स्‍पष्‍ट उल्‍लेख हुआ है तो अगले अनुवादकों की चुनौतियॉं भी उजागर हुई हैं।

समीक्षित पुस्‍तक गीतांजलि के हिन्‍दी अनुवाद, लेखक देवेन्‍द्र कुमार देवेश प्रथम संस्‍करण 2011, मूल्‍य 295 रुपये, पृष्‍ठ 220 (सजिल्‍द) प्रकाशक विजया बुक्‍स, 1/10753, सुभाष पार्क, गली नं. 8, नवीन शाहदरा, दिल्‍ली, मोबाइल : 9910189445 (राजीव शर्मा)

(प्रख्‍यात आलोचक डॉ. रेवती रमण, मो. 09006885907, की विस्‍तृत समीक्षा समकालीन भारतीय साहित्‍य, मई-जून 2011 के अंक में प्रकाशित हुई है। यहॉं उसी का अंश प्रस्‍तुत किया गया है।)


गुरुवार

मेहनतकशों के पक्ष में लिखी जा रही हैं कविताएं - शंकर, संपादक-’परिकथा’


      काव्य-यात्रा  : 04 सितंबर , 2011

मशेदपुर वीमेंस कॉलेज के सभागार में प्रगतिशील लेखक संघ और  ‘परिकथा ‘ के तत्वावधान में काव्य –विमर्श और काव्य–पाठ का एक विशिष्ट कार्यक्रम आयोजित किया गया | नगर के साहित्य –प्रेमियों का कहना है कि पिछले दो दशकों के अंतराल में इस लौह – नगरी में इस स्तर का अनूठा कार्यक्रम सम्पन्न नहीं हुआ था | बड़ी बात यह है कि बाजारवाद के इस आंधी दौड़ मे व्यस्त नगर के शिरकत करने वाले लोगों में लगभग 150 आगंतुक साहित्य से सरोकार रखने वाले थे और सब के सब  कार्यक्रम के अंत तक सभागार में मन से बने रहे | उनके चहरे पर खुशी की कौंध थी और उन्होंने   कार्यक्रम के आयोजकों के प्रति इसके लिए तहेदिल से आभारी व्यक्त किया | यही नहीं , कई टी.वी. चैनलों और प्रमुख दैनिक समाचार पत्रों के संपादक और संवाददाता भी अंत तक वहाँ जमे रहे |  उक्त कार्यक्रम में प्रगतिशील लेखक संघ के उपाध्यक्ष और प्रतिष्ठित समालोचक श्री डा. खगेन्द्र ठाकुर (पटना ) और वरिष्ठ लोकधर्मी कवि शंभु बादल के अतिरिक्त चर्चित साहित्यकार रणेन्द्र , युवा कवि शहंशाह आलम (पटना)  , कहानीकार अभय (सासाराम ), पंकज मित्र ( रांची),   अशोक सिंह (दुमका ) , अरविंद श्रीवास्तव (मधेपुरा ,बिहार ) और सुशील कुमार ( दुमका) विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित हुए थे | नगर के गणमान्य साहित्यकार और  “परिकथा” के संपादक शंकर , कथाकार जयनंदन और कमल , शायर अहमद बद्र और मंजर कलींम, कवयित्री ज्योत्सना अस्थाना के साथ संध्या सिन्हा , गीता नूर, उदय प्रताप हयात, मुकेश रंजन और शशि कुमार भी मौजूद थे |    पूरा कार्यक्रम दो सत्रों में संयोजित था | प्रथम सत्र 3.30 बजे अपराहन से आरंभ हुआ जो कवि सुशील कुमार की कविताओं का संग्रह ‘तुम्हारे शब्दों से अलग ‘ के काव्य-विमर्श पर केन्द्रित था और दूसरा सत्र (जो 6.00 बजे अप. से प्रारम्भ हुआ ) अतिथि-साहित्यकार और  नगर के चुनिंदों कवियों के काव्य-संध्या का |                   
  कार्यक्रम का शुभारंभ चर्चित युवा कवि और अनुवादक ( चर्चित काव्य संग्रह ‘नगाड़े की तरह बजते शब्द’ –निर्मला पुतुल ) के काव्य-विमर्श से हुआ जिन्होंने कहा कि सुशील कुमार का काव्य –संग्रह ‘तुम्हारे शब्दों से अलग ‘ बाजार के बढ़ते आतंक और शब्दों की बाजीगरी करते शब्द तशकरों के खिलाफ एक वैचारिक जंग का एलान है | इस संग्रह की कविताओं में न तो किसी बौद्धिक अभेद्यता का आतंक है और न ही किसी कौशल को चमत्कृत कर देने का उपक्रम और न ही अनुभवों को सरलीकरण करने वाली भावुकता | दूसरे वक्ता कवि अरविन्द श्रीवास्तव ने बताया कि  सांस्कृतिक बंजरपन के विरुद्ध उंम्मीद की कुछ कोमल –मुलायम पंक्तियों के साथ सुशील कुमार की प्रस्तुत संग्रह की कवितायें समय की आहट को बखूबी पहचानती है | युवा  कवि शहंशाह आलम ने रचनाओं को आम आदमी के काफी निकट बताया जिसमें सामाजिक चेतना का स्वर मुखर है जबकि वरिष्ठ लोकधर्मी कवि शंभु बादल ने कविता-पुस्तक को जन प्रगतिशील विचार का प्रतिबद्ध वैचारिक दस्तावेज़ कहा | शंकर ने सूक्ष्मता से संग्रह की कविताओं की चर्चा कराते हुए उसे जन-भावनाओं से ओत–प्रोत  और जीवन में आशा जगाने वाली बताया उन्होंने मेहनतकशों के पक्ष में लिखी जा रही कविताओं पर भी प्रकाश डाला | कथाकार जयनंदन ने इसे आदिवासी जन –जीवन की गाथा कहकर इसकी सराहना की और अहमद बद्र ने पुस्तक के आमुख पर विस्तार से प्रकाश डाला | प्रथम सत्र के अध्यक्षीय संभाषण में सुशील कुमार की कविताओं की रचना –प्रक्रिया पर बारीकी से चर्चा कर इसे संप्रति लिखी जा रही कविताओं की कड़ी में राजनीतीक चेतना का महत्वपूर्ण काव्य –संग्रह कहा और उसके संभावनाओं पर विमर्श करते हुए ऐसे ही लिखते रहने की कामना की  | दूसरे सत्र में सभी मंचासीन अतिथियों और नगर के प्रमुख कवियों ने अपनी कविताओं का पाठ कर श्रोताओं को सम्मोहित कर लिया | शहर के जाने –माने व्यक्तित्व मार्क्सवादी साहित्यकार शशि कुमार धन्यवाद–ज्ञापन से कार्यक्रम का समापन हुआ |

शनिवार

जमशेदपुर में प्रगतिशील लेखक संघ और साहित्यिक पत्रिका ‘परिकथा’ द्वारा संयोजित काव्य विमर्श और काव्य-पाठ










      
 आमंत्रण                                                               


  






 मान्यवर,
    4 सितम्बर,2011 को अपराह्न 3 बजे जमशेदपुर वीमेन्स कालेज  (Faculty of Education) के हाल में काव्य-विमर्श और काव्य-पाठ का एक विशिष्ठ कार्यक्रम संयोजित है
    उक्त कार्यक्रम में सर्वश्री डा. खगेन्द्र ठाकुर, अरुण कमल, डा. शंभु बादल, अभय, शहंशाह आलम, अशोक सिंह और अरविन्द श्रीवास्तव विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित रहेंगे
    कार्यक्रम में आपकी उपस्थिति सादर प्रार्थित है।
                                                            निवेदक
                                                               शंकर
                                                        संपादक: परिकथा


अंतर्राष्ट्रीय इंदु शर्मा कथा सम्मान एवं पद्मानंद साहित्य सम्मान 2011 पर ज़ारी स्मारिका।


लेखक आत्मा के कॊफी हाउस का परिचारक ही होता है - विकास कुमार झा 

इंदु शर्मा मेमोरियल ट्रस्ट के मुख्य न्यासी तेजेन्द्र शर्मा के लंदन में आप्रवासी भारतीय के रूप में बस जाने के बाद कथा यू के के बैनर तले यह संस्था कार्य करने लगी। कथा यू के यूनाइटेड में बसे दक्षिण एशियाई मूल के लेखकों के समूदाय की संस्था है और भारत के मुंबई शहर से जुड़ी साहित्यिक, सामाजिक संस्था इंदु शर्मा मेमोरियल ट्रस्ट इसकी मूल इकाई है। नई शताब्दी यानि 2000 से इंदु शर्मा कथा सम्मान को अंतराष्ट्रीय स्वरूप दिया गया साथ ही उम्र सीमा हटा दी गई तथा उपन्यास विधा को भी सम्मान हेतु शामिल किया गया। भारत से आनेवाले सम्मानित लेखक को भारत-लंदन/लंदन-भारत का हवाई जहाज का टिकट, लंदन में एक सप्ताह रहने व आसपास के दर्शनीय स्थानों का भ्रमण करवाया जाता है। अब तक यह अंतराष्ट्रीय इंदु शर्मा कथा सम्मान चित्रा मुद्गल, संजीव, ज्ञान चतुर्वेदी, एस आर हरनोट, विभूतिनारायण राय, प्रमोद कुमार तिवारी, असगर वजाहत, महुआ माजी, नासिरा शर्मा, भगवानदास मोरवाल और विकास कुमार झा को प्रदान किया जा चुका है।
    इंग्लैण्ड के हिन्दी साहित्यकारों को सम्मानित करने हेतु पद्मानंद साहित्य सम्मान पाने वालों में डाक्टर सत्येन्द्र श्रीवास्तव, दिव्या माथूर, नरेश भारतीय, भारतेन्दु विमल, अचला शर्मा, उषा राजे सक्सेना, गोविन्द शर्मा, गौतम सचदेव, उषा वर्मा, मोहन दवेसर दीपक, कादम्बरी मेहरा और नीना पाल को प्रदान किया जा चुका है।
    लंदन में आयोजित इस सम्मान समारोह में भारत के उच्चायुक्त श्री नलिन सूरी ने ब्रिटिश संसद के हाउस आफ कामन्स में हिन्दी लेखक विकास कुमार झा को उनके कथा उपन्यास ‘मैकलुस्कीगंज’ के लिए ‘सतरहवां अंतर्राष्ट्रीय इंदु शर्मा कथा सम्मान’ तथा लेस्टर निवासी ब्रिटिश हिन्दी लेखिका श्रीमती नीना पॊल को बारहवां पद्मानंद साहित्य सम्मान प्रदान करते हुए कहा कि ‘ हिन्दी अब आहिस्ता-आहिस्ता विश्व भाषा का रूप ग्रहण कर रही है। बाजार को इस बात की खबर लग चुकी है कि यदि भारत में पांव जमाने हैं तो हिन्दी का ज्ञान जरूरी है।
विकास कुमार झा ने कहा कि ‘एक कवि या लेखक आत्मा के कॊफी हाउस  का परिचारक ही होता है। आत्मा के अदृश्य कॊफी हाउस का मैं एक अनुशासित वेटर (परिचारक) हूँ और अगला आदेश लेने के लिए प्रतीक्षा में हूँ।’ अपने उपन्यास पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा- ‘मैकलुस्कीगंज’ मेरे लिए जागी आंखों का सपना है।’ .....
यह महज संयोग ही है कि जिस वक्त इस स्मारिका का पैकेट विकास दा को मिला, मैं उनके साथ आवास पर था और उनके हाथों से इस स्मारिका को पाने वाला मैं (अरविन्द श्रीवास्तव) पहला व्यक्ति बना !! विकास कुमार झा को पुनः बधाई, अशेष शुभकामनाएं। 



सोमवार

‘अघोषित युद्ध की भूमिका’ से अजित कुमार आजाद की दो कविताएँ

 मैथिली कविता में नव्यतम पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करने वाले अजित कुमार आजाद  की कविताओं का बहुरंगी फलक समकालीन काव्य परिदृश्य में नवीनता का अहसास कराती है। इनकी कविताएँ समय से सीधा-सीधा संवाद और मुठभेड़ करती है। मैथिली कविता संग्रह ‘युद्धक विराधमे बुद्धक प्रतिहिंसा’ का हिन्दी अनुवाद ‘अघोषित युद्ध की भूमिका’ इनकी महत्वपूर्ण कृति आयी है। अजित की दो कविताएँ मित्रों के लिए:
पृथ्वी की कोख में सुरक्षित है भ्रूण 

सुरक्षित है पृथ्वी की कोख में भ्रूण
जन्म देने के लिए जगह
सुरक्षित है अभी भी
कास की फुनगी पर आस की हरियाली
सूर्य के चारों ओर नाचती है पृथ्वी
पृथ्वी के चारों ओर प्रक्षेपास्त्र
मनुष्य ने किया प्रत्यारोपित
पृथ्वी की कोख में बारूद
बावजूद इसके
सुरक्षित है नींद में सोये बच्चे का भविष्य
और स्वप्न देखने का उसका अधिकार

धरती का ताप बढ़ता जा रहा
अबाह-घबाह पैरों से नापता है इतिहास
जबकि लिप्त हैं लोग
भ्रूण हत्या के आदिम षड्यंत्र में
अपनी सम्पूर्ण आस्था के साथ रखा है सुरक्षित
नवसृष्टि का भ्रूण पृथ्वी ने अपनी कोख में...

अखबार में प्रेम

एक सनसनीखेज समाचार की
सभी शर्तें पूरा करने के बावजूद
प्रथम पृष्ठ से अंतिम पृष्ठ तक
भटकता रह जाता है प्रेम

महानगर के पृष्ठ पर
कभी-कभी झाँकने वाला प्रेम
अंचल के पृष्ठों पर घिसटते हुए
बलात्कार के खबर में बदलकर
अर्थ-व्यापार के पन्ने में गायब हो जाता है

खेल पृष्ठ पर खिलवाड़-सा लगता है प्रेम
एक विज्ञापनी मुद्रा से बढ़कर
और कुछ भी नहीं
अखबार को बाजार दिलाती है प्रेम
लेकिन प्रेम को थोड़ी भी जगह
नहीं देता अखबार

प्रेम यदि आ भी जाए
समाचार डेस्क तक
तो संपादक से
बिना बलत्कृत हुए नहीं छपता है
आश्चर्य कि
अखबार भी तभी बिकता है...!
संपर्कः 21, एम.आई.जी., हनुमान नगर, पटना-20
मोबाइल- 09234942661.

मंगलवार

वन्दना राग को पहला कृष्ण प्रताप कथा सम्मान / केदार सम्मान वर्ष 2011 हेतु प्रविष्टियां आमंत्रित


       समकालीन हिन्दी  कहानी के चर्चित कथाकार कृष्ण प्रताप की स्मृति में वर्ष 2010 का  कृष्ण प्रताप कथा सम्मान  युवा एवं चर्चित कहानी कार वन्दना राग को पहला कृष्ण प्रताप  कथा सम्मान उनके वर्ष 2010 में प्रकाशित  प्रथम कहानी संग्रह यूटोपिया को प्रदान किया जाता है । यह निर्णय श्री विभूति नारायण राय, ममता कालिया एवं श्री दिनेश कुमार शुक्ल निर्णायक समिति के सदस्यों के व्दारा लिया गया । यह कथा सम्मान आगामी  अक्टूबर माह में  प्रदान किया जायेगा जिसमें कथाकार को 11000/- ग्यारह हजार की धनराशि ,प्रशस्ति पत्र ,पदक एवं शाल आदि भेंट किये जायेंगे । निर्णय की प्रशस्ति में कहा गया है कि युटोपिया की कहानियों  में कहानी के स्थापित ढ़ाचों  को तोड़ कर  कहानी कार  ने अपनी  कहानियों के लिए रचना की नई जमीन तैयार की है । बन्दना की कहानियों की संवेदना दृष्टि अति सूक्ष्म होने के साथ - साथ दृष्टि प्रदान करती है । जो भीतर तक जाकर टोहती है। इन कहांनियों में बन्दनाराग कुशल किस्सागो नजर आती हैं।

मकालीन हिन्दी  कविता का महत्वपूर्ण  सम्मान केदार सम्मान, वर्ष 2011 हेतु प्रकाशकों, कविता के शुभचिन्तकों  एवं कवियों  से प्रवृष्टियां आमंत्रित की जाती हैं ।  वर्ष 2006 से 2011 के मध्य प्रकाशित  कविता संकलन दो प्रतियों में आमत्रित किये जाते हैं । इस महत्वपूर्ण सम्मान में आजादी के बाद जन्में  रचना कार ही शामिल हो सकतें हैं । इसमें वहीं प्रवृष्टियां स्वीकार होगी जिनकी रचनाधर्मिता केदारनाथ अग्रवाल की  परम्परा में  वैज्ञानिक चेतना के हिमायती  हो । प्रविष्टियां  30 नवम्बर 2011 तक शामिल की जायेंगी । 
संयोजक:
नरेन्द्र पुण्डरीक
कृष्ण प्रताप कथा सम्मान / केदार सम्मान 
डी0 एम0 कालोनी ,सिविल लाइन
बांदा - 210001 उ0 प्र0,  मो0 9450169568


     

शुक्रवार

विश्व प्रसिद्ध चित्रकार मकबूल फिदा हुसैन की यादों को समर्पित कविता-संग्रह (पुस्तक) हेतु कविताएँ सादर आमंत्रित:

तूलिका के धनी मकबूल फिदा हुसैन मानवीय रचनात्मकता, परंपरा तथा आधुनिकता के सेतु थे। हुसैन ने बौद्ध काल के बाद से छूटी हुई कला की कडिय़ों को जोडऩे का प्रयास किया था। रामायण मेलों के लिए हजारों चित्र बनाये थे। हुसैन सर्वधर्म समभाव और गंगा जमुनियत के प्रतीक थे। कवि मुक्तिबोध की यात्रा से लौटकर उन्होंने चप्पलें पहनना छोड़ दिया और अंत तक इस प्रतिज्ञा को निभाया...

    विश्व प्रसिद्ध चित्रकार मकबूल फिदा हुसैन की यादों को समर्पित कविता-संग्रह (पुस्तक) हेतु  कविताएँ सादर आमंत्रित:-
    
        अपनी दो कविताएँ इस संग्रह में प्रकाशनार्थ भेज सकते हैं।
                 अन्तिम तिथि - 15 जुलाई 2011.
         पताः  राजेन्द्र शर्मा, जेड-320, सेक्टर-12, नोएडा (उ.प्र.)
                    मोबाइल- 09891062000.
             e.mail- pratibimb22@gmail.com

बुधवार

न्यू मीडिया कंपोजिट मीडिया है: देवेन्द्र कुमार देवेश


 देवेन्द्र कुमार देवेश, उप संपादक











साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली.


नुष्यमात्र की भाषायी अथवा कलात्मक अभिव्यक्ति को एक से अधिक व्यक्तियों तथा स्थानों तक पहुँचाने की व्यवस्था को ही मीडिया का नाम दिया गया है। पिछली कई सदियों से प्रिंट मीडिया इस संदर्भ में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती आ रही है, जहाँ हमारी लिखित अभिव्यक्ति पहले तो पाठ्य रूप में प्रसारित होती रही तथा बाद में छायाचित्रों का समावेश संभव होने पर दृश्य अभिव्यक्ति भी प्रिंट मीडिया के द्वारा संभव हो सकी। यह मीडिया बहुरंगी कलेवर में और भी प्रभावी हुई। बाद में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने भी साथ-साथ अपनी जगह बनाई, जहाँ पहले तो श्रव्य अभिव्यक्ति को रेडियो के माध्यम से प्रसारित करना संभव हुआ तथा बाद में टेलीविजन के माध्यम से श्रव्य-दृश्य दोनों ही अभिव्यक्तियों का प्रसारण संभव हो सका। प्रिंट मीडिया की अपेक्षा यहाँ की दृश्य अभिव्यक्ति अधिक प्रभावी हुई, क्योंकि यहाँ चलायमान दृश्य अभिव्यक्ति भी संभव हुई। बीसवीं सदी में कंप्यूटर के विकास के साथ-साथ एक नए माध्यम ने जन्म लिया, जो डिजिटल है। प्रारंभ में डाटा के सुविधाजनक आदान-प्रदान के लिए शुरू की गई कंप्यूटर आधारित सीमित इंटरनेट सेवा ने आज विश्वव्यापी रूप अख्तियार कर लिया है। इंटरनेट के प्रचार-प्रसार और निरंतर तकनीकी विकास ने एक ऐसी वेब मीडिया को जन्म दिया, जहाँ अभिव्यक्ति के पाठ्य, दृश्य, श्रव्य एवं दृश्य-श्रव्य सभी रूपों का एक साथ क्षणमात्र में प्रसारण संभव हुआ।
जी हाँ, यह वेब मीडिया ही न्यू मीडियाहै, जो एक कंपोजिट मीडिया है, जहाँ संपूर्ण और तत्काल अभिव्यक्ति संभव है, जहाँ एक शीर्षक अथवा विषय पर उपलब्ध सभी अभिव्यक्यिों की एक साथ जानकारी प्राप्त करना संभव है, जहाँ किसी अभिव्यक्ति पर तत्काल प्रतिक्रिया देना ही संभव नहीं, बल्कि उस अभिव्यक्ति को उस पर प्राप्त सभी प्रतिक्रियाओं के साथ एक जगह साथ-साथ देख पाना भी संभव है। इतना ही नहीं, यह मीडिया लोकतंत्र में नागरिकों के वोट के अधिकार के समान ही हरेक व्यक्ति की भागीदारी के लिए हर क्षण उपलब्ध और खुली हुई है।वेब मीडियापर अपनी अभिव्यक्ति के प्रकाशन-प्रसारण के अनेक रूप हैं। कोई अपनी स्वतंत्र वेबसाइटनिर्मित कर वेब मीडिया पर अपना एक निश्चित पता आौर स्थान निर्धारित कर अपनी अभिव्यक्तियों को प्रकाशित-प्रसारित कर सकता है। अन्यथा बहुत-सी ऐसी वेबसाइटें उपलब्ध हैं, जहाँ कोई भी अपने लिए पता और स्थान आरक्षित कर सकता है। अपने निर्धारित पते के माध्यम से कोई भी इन वेबसाइटों पर अपने लिए उपलब्ध स्थान का उपयोग करते हुए अपनी सूचनात्मक, रचनात्मक, कलात्मक अभिव्यक्ति के पाठ्य अथवा ऑडिया/वीडियो डिजिटल रूप को अपलोड कर सकता है, जो तत्क्षण दुनिया में कहीं भी देखे-सुने जाने के लिए उपलब्ध हो जाती है।
बहुत-सी वेबसाइटें संवाद के लिए समूह-निर्माण की सुविधा देती हैं, जहाँ समान विचारों अथवा उद्देश्यों वाले लोग एक-दूसरे से जुड़कर संवाद कायम कर सकें। वेबग्रुपकी इस अवधारणा से कई कदम आगे बढ़कर फेसबुक और ट्विटर जैसी ऐसी वेबसाइटें भी मौजूद हैं, जो प्रायः पूरी तरह समूह-संवाद केन्द्रित हैं। इनसे जुड़कर कोई भी अपनी मित्रता का दायरा दुनिया के किसी भी कोने तक बढ़ा सकता है और मित्रों के बीच जीवंत, विचारोत्तेजक, जरूरी विचार-विमर्श को अंजाम दे सकता है। इसे सोशल नेटवर्किंग का नाम दिया गया है।वेब मीडियासे जो एक अन्य सर्वाधिक लोकप्रिय उपक्रम जुड़ा है, वह है ब्लॉगिंगका। कई वेबसाइटें ऐसी हैं, जहाँ कोई भी अपना पता और स्थान आरक्षित कर अपनी रुचि और अभिव्यक्ति के अनुरूप अपनी एक मिनी वेबसाइट का निर्माण बिना किसी शुल्क के कर सकता है। प्रारंभ में वेब लॉगके नाम से जाना जानेवाला यह उपक्रम अब ब्लॉगके नाम से सुपरिचित है। अभिव्यक्ति के अनुसार ही ब्लॉग पाठ्य ब्लॉग, फोटो ब्लॉग, वीडियो ब्लॉग (वोडकास्ट), म्यूजिक ब्लॉग, रेडियो ब्लॉग (पोटकास्ट), कार्टून ब्लॉग आदि किसी भी तरह के हो सकते हैं। यहाँ आप नियमित रूप से उपस्थित होकर अपनी अभिव्यक्ति अपलोड कर सकते हैं और उस पर प्राप्त प्रतिक्रियाओं को इटरैक्ट कर सकते हैं। ब्लॉगनिजी और सामूहिक दोनों तरह के हो सकते हैं। यहाँ अपनी मौलिक अभिव्यक्ति के अलावा दूसरों की अभिव्यक्यिों को भी एक-दूसरे के साथ शेयर करने के लिए रखा जा सकता है।
बहुत से लोग ब्लॉगको एक डायरी के रूप में देखते हैं, जो नियमित रूप से वेब पर लिखी जा रही है, एक ऐसी डायरी, जो लिखे जाने के साथ ही सार्वजनिक भी है, सबके लिए उपलब्ध है, सबकी प्रतिक्रिया के लिए भी। लेकिन मैं समझता हूँ कि ब्लॉगनियमित रूप से लिखी जानेवाली चिट्ठी है, जो हरेक वेबपाठक को संबोधित है, पढ़े जाने के लिए, देखे-सुने जाने के लिए और उचित हो तो समुचित प्रत्युत्तर के लिए भी। ब्लॉगको डायरी कहा जाना बिलकुल उचित नहीं, क्योंकि डायरी हमेशा आत्मावलोकन और आत्मालोचन के लिए लिखी जाती है, जो सर्वथा निजी भी होती है।
और यहीं जब मैं यह कह रहा हूँ कि ब्लॉगडायरी नहीं चिट्ठी है, तभी इसका स्वरूप और दायित्वपूर्ण भूमिका भी निश्चित हो जाते हैं; क्योंकि वेब मीडियापर प्रस्तुत होनेवाली सामग्री पर कोई अंकुश नहीं, यहाँ कोई भी, कुछ भी, कैसा भी अभिव्यक्त करने के लिए स्वतंत्र है; इसलिए मैं कहना चाहूँगा कि न्यू मीडियाका यह स्वरूप और इसकी प्रकृति ही इसके महत्त्व और भूमिका के निर्धारण के लिए हमें अनेक सूत्र देते हैं। मित्रो, समुद्र जितना शांत होता है, उतना ही तूफान की प्रबल आशंका होती है; जो पक्ष जितना सकारात्मक होता है, उसकी नकारात्मकता भी उतनी ही प्रबल होती है; इसलिए वेब मीडियाअपनी उपयोगिता में जितना ज्यादा प्रभावी है, यदि कोई इसका दुरुपयोग करे तो इसका प्रभाव भी उतना ही गहरा होगा। इसलिए इस मीडिया का प्रयोक्ता जो भी व्यक्ति है, उसे ही अपनी सचेत और दायित्वपूर्ण भूमिका निर्धारित करनी होगी और मीडिया के सकारात्मक प्रयोग पर बल देना होगा। दुनिया में वेब मीडियाका प्रथम प्रयोग अमेरिका में 29 अक्तूबर 1989 को अर्पानेटके नाम से हुआ। भारत में इसका आरंभ 1994 में हुआ, जिसे 15 अगस्त 1995 को व्यावसायिक रूप दिया गया। वेबसाइटों पर निःशुल्क रूप में निजी अभिव्यक्ति का आरंभ 1994 में geocities.com एवं tripod.com के द्वारा हुआ। पहला अंग्रेजी ब्लॉग 1997 में शुरू हुआ, जबकि हिन्दी में ब्लॉगिंग की शुरुआत श्री आलोक कुमार द्वारा 2 मार्च 2003 को हुई। वर्तमान में अनुमानतः 15 करोड़ ब्लॉग हैं। भारत में प्रायः सवा करोड़ ब्रॉडबैंड उपभोक्ता हैं, लेकिन हिन्दी ब्लॉगों की संख्या कुछेक हजार ही है, जो अपेक्षाकृत बहुत ही कम है। फिर भी हिन्दी ब्लॉगिंगके भविष्य को लेकर निराश होने की जरूरत नहीं है। इंटरनेट-साक्षरता और उपयोग में निरंतर वृद्धि ही होनी है। मोबाइल के माध्यम से प्राप्त इंटरनेट सुविधाओं ने भी न्यू मीडियामें प्रवेश, प्रयोग और उपयोग को व्यापक बनाया है। हिन्दी के ब्लॉग निजी और सामूहिक तौर पर निरंतर तैयार किए जा रहे हैं। एग्रीगेटर और सोशल नेटवर्किंग के माध्यम से उन्हें लोकप्रिय बनाने के प्रयत्न भी किए जा रहे हैं। प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को इस न्यू मीडियाने आकर्षित ही नहीं, वरन प्रभावित भी किया है। अधिकांश हिन्दी ब्लॉगनिजी अभिव्यक्तियाँ हैं, बहुत-सी सामूहिक। इन ब्लॉगों के माध्यम से सूचना, समाचार, साहित्य और कला की तमाम अभिव्यक्तियाँ वेबपाठकों को परोसी जा रही हैं। साहित्य की हर विधा, कला का हर रूप, समाचार-विचार के तमाम विन्दु और सूचनाओं का भंडार इनके माध्यम से हमारे सामने आ रहा है। कुछ ब्लॉग साहित्यिक पत्रिका के रूप में हैं, तो कुछ समाचारपत्रिका के रूप में। यहाँ लेखक एवं प्रस्तोता पाठक/दर्शक/श्रोता सभी अपने सोच-विचारों, वाद-प्रतिवादों के साथ एक साथ-एक जगह समेकित रूप में उपस्थित हैं-एक-दूसरे से संवाद करते हुए, जो संवाद सर्वसुलभ भी हैं।
चूँकि अभिव्यक्ति के संपादन, प्रकाशन और प्रसार के अंकुश से युक्त सीमित मीडिया की अपेक्षा इस न्यू मीडिया ने अभिव्यक्ति के निरंकुश प्रसार की असीमित संभावनाओं की विस्फोटक स्थिति को जन्म दिया है, इसलिए इसका प्रारंभिक तेवर आक्रामक है, अराजक भी। इसे संयमित, संतुलित किए जाने के साथ-साथ इसका नियमन भी जरूरी है। मौलिक अभिव्यक्ति के स्वत्वाधिकार की रक्षा के साथ मर्यादित भाषा के प्रयोग और शुद्ध पाठ की प्रस्तुति के प्रयत्न भी यहाँ निश्चित रूप से किए जाने चाहिए; जिसके लिए दुनिया के तमाम मीडिया-विशेषज्ञ चिंतित हैं। लेकिन फिलहाल अपनी मर्यादा का नियमन न्यू मीडियाके प्रयोक्ताओं को स्वयं ही करना होगा, क्योंकि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का संतुलित और सकारात्मक प्रयोग न्यू मीडियाका सर्वाधिक उज्जवलतम पक्ष है।


सोमवार

'उद्भ्रांत की काव्य-प्रतिभा का विस्फ़ोट रवीन्द्रनाथ जैसा’- नामवर


यी दिल्ली। ‘‘कवि उद्भ्रांत की एक साथ तीन नयी काव्य-कृतियों का लोकार्पण अद्भुत ही नहीं ऐतिहासिक भी है। इतनी कविताओं का लिखना उनकी प्रतिभा का विस्फोट है रवीन्द्र्नाथ मे भी ऎसा ही विस्फॊट हुआ था, साथ ही इनमें रचनाकार की सर्जनात्मक ऊर्जा की भी दाद देनी होगी।’’ ये बातें मूर्द्धन्य आलोचक डॉ. नामवर सिंह ने उद्भ्रांत की तीन काव्य-कृतियों ‘अस्ति’ (कविता संग्रह), ‘अभिनव पांडव’ (महाकाव्य) एवं ‘राधामाधव’ (प्रबंध काव्य) के लोकार्पण के अवसर पर शुक्रवार दिनांक 17 जून, 2011 को हिन्दी भवन, दिल्ली में आयोजित ‘समय, समाज, मिथक: उद्भ्रांत का कवि-कर्म’ विषयक संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए कहीं। नामवर जी ने उद्भ्रांत के पूरे रचनात्मक जीवन पर प्रकाश ड़ालते हुए कहा कि उनकी ‘सूअर’ शीर्षक कविता नागार्जुन की मादा सूअर पर लिखी कविता के बाद उसी विषय पर ऐसी कविता लिखने के उनके साहस को प्रदर्शित करती है जिसके लिये वे बधाई पात्र हैं। उनकी सर्जनात्मक ऊर्जा की दाद देनी होगी। हिन्दी भाषा में पांच सौ पृष्ठों के पहले वृहद्काय कविता संग्रह ‘अस्ति’ का लोकार्पण करते हुए उन्होंने कहा कि कवि अपने शब्दों के द्वारा इसी दुनिया में एक समानान्तर दुनिया रचता है, जो विधाता द्वारा रची दुनिया से अलग होकर भी संवेदना से भरपूर होती है। मिथकों को माध्यम बनाकर उन्होंने जो रचनाएं की हैं, वे भी उनकी समकालीन दृष्टि के साथ उनकी बहुमुखी उर्वर प्रतिभा को प्रदर्शित करती हैं। मुख्य वक्ता वरिष्ठ आलोचक डॉ. शिवकुमार मिश्र ने ‘अभिनव पांडव’ (महाकाव्य) का लोर्कापण करते हुए कहा कि इसमें कवि ने महाभारत का एक तरह से पुनर्पाठ आधुनिक संदर्भ में बेहद गंभीरता के साथ किया है। युधिष्ठिर को केन्द्र में रखकर जिस तरह से उनको और उनके माध्यम से महाभारत के दूसरे महत्त्वपूर्ण चरित्रों को वे प्रश्नों के घेरे में लाये हैं, वह अद्भुत है और इससे युधिष्ठिर औरअन्य मिथकीय चरित्रों के दूसरे पहलुओं के बारे में जानने का भी हमें मौक़ा मिलता है। महाकवि प्रसाद की ‘कामायनी’ से तुलना करते हुए उन्होंने कहा कि वह महाकाव्य नहीं है, लेकिन महत् काव्य ज़रूर है। ‘अभिनव पांडव’ को कवि ने महाकाव्य कहा है और अपनी भूमिका ‘बीजाक्षर’ में इस सम्बंध में बहस की है और अपने तर्क दिये हैं, लेकिन मैं इसे विचार काव्य कहूँगा जो महत् काव्य भी है और मेरा विश्वास है कि आने वाले समय में हिन्दी के बौद्धिक समाज में यह व्यापक विचारोत्तेजना पैदा करेगा। उन्होंने कहा कि ‘राधामाधव’ काव्य बहुत ही मनोयोग से लिखा गया काव्य है, जिस पर बिना गहराई के साथ अध्ययन किए जल्दबाजी में टिप्पणी नहीं की जा सकती। इनकी रचनाएं समय की कसौटी पर खरी उतरी हैं। अपनी पचास वर्ष से अधिक समय की रचना-यात्रा में उनके द्वारा पचास-साठ से अधिक पुस्तकें लिखना सुखद आश्चर्य का विषय है। वरिष्ठ आलोचक डॉ. नित्यानंद तिवारी ने ‘राधामाधव’ का लोकार्पण करते और कवि की अनेक रचनाओं के उदाहरण देते हुए कहा कि उनके पास कहने को बहुत कुछ है और लिखने की शैली भी अलग है। मिथकों को लेकर उन्होंने कई रचनाएं की हैं जो अपने आप में महत्त्वपूर्ण हैं। इसमें संदेह नहीं कि वे हिन्दी के सुप्रतिष्ठित कवि हैं। उनका रचनात्मक आवेग बहुत तीव्र है और उनके पास अक्षय भंडार है। पूतना के माध्यम से आदिवासी स्त्राी जीवन का चरित्रा-चित्राण अनोखा है। कवि ने अपने सम्पूर्ण काव्य-सृजन को समकालीन बनाने की हर संभव कोशिश की है जिसके लिए उनकी प्रशंसा की जानी चाहिए। सत्यप्रकाश मिश्र, राममूर्ति त्रिपाठी और रमाकांत रथ जैसे अनेक भारतीय विद्वानों ने उनकी इस विशिष्टता को रेखांकित भी किया है। कवि लीलाधर मंडलोई ने कहा कि बिना राधा के आख्यान को रचे राधाभाव को रचना ‘राधामाधव’ का महत्त्वपूर्ण तत्व है। इसमें स्त्री विमर्श भी है जिससे कवि की अलग पहचान बनती है। इनके समूचे साहित्य में मूल पूंजी आख्यान है और आख्यान को साधना बहुत बड़ी बात है। आलोचक डॉ. संजीव कुमार ने कहा कि विवेच्य संग्रह ‘अस्ति’ में इतनी तरह की और इतने विषयों की कविताएं हैं जो पूरी दुनिया को समेटती हैं। उद्भ्रांत जी की कविताओं में पर्यावरण के साथ-साथ पशु-पक्षियों और संसार के समस्त प्राणियों की संवेदना को महसूस किया जा सकता है। संग्रह की अनेक कविताएं अद्भुत हैं। साहित्यकार धीरंजन मालवे ने कविता संग्रह ‘अस्ति’ पर केन्द्रित आलेख का पाठ करते हुए कहा कि कवि ने कविता की हर विधा को सम्पूर्ण बनाने में अपनी भूमिका निभाई है और उनकी कृतियों से यह साफतौर पर ज़ाहिर होता है कि उद्भ्रांत नारी-सशक्तीकरण के प्रबल पक्षधर हैं। इसके साथ ही उन्होंने दलित चेतना के साथ अनेक विषयों पर बेहतरीन कविताएं लिखीं हैं। संगोष्ठी का बीज-वक्तव्य देते हुए जनवादी लेखक संघ की दिल्ली इकाई के सचिव प्रखर आलोचक डॉ. बली सिंह ने कहा कि आज के दौर में इतने तरह के काव्यरूपों में काव्य रचना बेहद मुश्किल है, लेकिन उद्भ्रांत जी इसे संभव कर रहे हैं। उनकी कविताएं विचारों से परिपूर्ण हैं। यहाँ सांस्कृतिक मसले बहुत आये हैं और पहले की अपेक्षा उनकी कविताओं में स्मृतियों की भूमिका बढ़ी है। ‘राधामाधव’ स्मृतियों का विलक्षण काव्य है। ‘अभिनव पांडव’ में स्त्रियों के प्रति बराबरी के दर्जे के लिये कई सवाल उठाये गये हैं जो आज के दौर में अत्यंत प्रासंगिक हैं। उन्होंने इस उत्तर आधुनिक समय में आई उद्भ्रांत की मिथकाधारित और विचारपूर्ण समकालीन कविताओं को बहुत महत्त्वपूर्ण बताया। प्रारम्भ में, कवि उद्‍भ्रांत ने तीनों लोकार्पित कृतियों की चुनिंदा कविताओं और काव्यांशों का प्रभावशाली पाठ करने के पूर्व ‘अस्ति (कविता-संग्रह)’ जिसे उन्होंने ‘कविता और जीवन के प्रति आस्थावान’ अपने सुधी और परम विश्वसनीय पाठक-मित्र के निमित्त ‘समर्पित किया है- की प्रथम प्रति बड़ी संख्या में उपस्थित सुधी श्रोताओं में से एक वरिष्ठ कवि श्री शिवमंगल सिद्धांतकर को तथा ‘राधा-माधव’- जिसे उन्होंने पत्नि और तीनों बेटियों के नाम समर्पित किया है- की प्रथम प्रति श्रीमती उषा उद्‍भ्रांत को भेंट की। कार्यक्रम का कुशल संचालन करते हुए दूरदर्शन महानिदेशालय के सहायक केन्द्र निदेशक श्री पी.एन. सिंह द्वारा कवि के सम्बंध में दी गई इन दो महत्त्वपूर्ण सूचनाओं ने सभागार में मंच पर उपस्थित विद्वानों और सुधी श्रोताओं को हर्षित कर दिया कि वर्ष 2008 में ‘पूर्वग्रह’ (त्रौमासिक) में प्रकाशित उनकी जिस महत्त्वूपर्ण लम्बी कविता ‘अनाद्यसूक्त’ के पुस्तकाकार संस्करण को लोकार्पित करते हुए नामवर जी ने उसे उस समय तक की उनकी सर्वश्रेष्ठ कृति घोषित किया था-को वर्ष 2008 के ‘अखिल भारतीय भवानी प्रसाद मिश्र पुरस्कार’ से सम्मानित करने की घोषणा हुई है। इसके अलावा उडीसा से पद्मश्री श्रीनिवास उद्गाता जी-जिन्होंने रमाकांत रथ के ‘सरस्वती सम्मान’ से अलंकृत काव्य ‘श्रीराधा’ का उड़िया से हिन्दी में तथा धर्मवीर भारती की ‘कनुप्रिया’ का हिन्दी से उड़िया में काव्यानुवाद किया था-ने कवि को सूचित किया है कि वे आज लोकार्पित ‘राधामाधव’ का भी हिन्दी से उड़िया में काव्यानुवाद कर रहे हैं जो बहुत जल्द उड़िया पाठक-समुदाय के समक्ष आयेगा। धन्यवाद-ज्ञापन हिन्दी भवन के प्रबंधक श्री सपन भट्टाचार्य ने किया।
प्रस्तुतकर्ता
तेजभान
ए-131, जहांगीरपुरी, नई दिल्ली-110033
मोबाईल: 9968423949

बुधवार

उर्दू में गुलज़ार का नया काव्य-संग्रह पंद्रह पांच पचहत्तर


मुझे अफ़सोस है सोनां
कि मेरी नज़्म से होकर गुज़रते वक्त बारिश में
परेशानी हुई तुमको
बड़े बेवक्त आते हैं यहां सावन
मेरी नज़्मों की गलियां यों भी अक्सर भीगी रहती है
कई गड्ढों में पानी जमा रहता है
अगर पांव पड़े तो मोच आ जाने का ख़तरा है

मुझे अफ़सोस है लेकिन-
परेशानी हुई तुमको कि मेरी नज़्म में कुछ रोशनी कम है
गुज़रते वक्त दहलीजों के पत्थर भी नहीं दिखते
कि मेरे पैरों के नाख़ून कितने बार टूटे हैं-
हुई मुद्दत कि चैराहे पे अब बिजली का खंभा भी नहीं जलता
परेशानी हुई तुमको-
मुझे अफ़सोस है सचमुच!
 
प्रकाशकः उर्दू मरकज़ अजी़माबाद
247 एम आई जी लोहियानगर
पटना-800 020. मोबाइल- 09431602575.

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